जानिए राधा रानी का विवाह श्री कृष्ण से हुआ या किसी और से, ऐसा क्या हुआ था ?
हम आज भी भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा रानी की ही पूजा करते हैं, किंतु भगवान श्री कृष्ण का विवाह राधा रानी के साथ संपन्न ना हो सका। विवाह ना होने के बाद आज भी हम राधा रानी को पहले और फिर कृष्ण का नाम लेते है, ऐसा क्यों जानिए आगे......
दक्षिण भारत के ग्रंथों में राधारानी का जिक्र नहीं मिलता। एक संस्करण में राधा रानी के बारे में लिखा है कि उनका विवाह बचपन में ही हो गया था, वो भी ब्रह्मदेव द्वारा उस विवाह को सम्पन्न किया गया था।
वे सभी साहित्य और धर्म ग्रंथ जिनमें श्री कृष्ण जी का उल्लेख मिलता है उनमे से केवल ब्रह्मवैवर्त पुराण और कवि जयदेव में ही राधा रानी जी का भी उल्लेख किया गया है। राधा रानी का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण में लिखा गया है कि राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थी। वृषभानु वैश्य थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा का विवाह किशोर अवस्था में ही रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हो गया था। चार मील का फासला था नंदगांव-बरसाना में। महाभारत में शामिल हुए सभी महान पात्र भगवान श्री कृष्ण के चरित्र की प्रशंसा करते थे। उस समय में किसी भी पराई स्त्री के साथ संबंध रखना दुराचार माना जाता था। यदि श्री कृष्ण का भी राधा से या किसी भी ओर पराई औरत से संबंध होता तो भगवान श्रीकृष्ण पर भी उंगली उठाई जाती। उस समय खुद पराई औरत भी किसी और आदमी के सामने देखना नहीं चाहती थी, अगर देख लेती तो लोग उसे बुरा भला बोलते थे।
तो क्या राधा केवल एक मात्र काल्पनिक चरित्र है?
राधा रानी का नाम सबसे पहले और सबसे अधिक ब्रह्मवैवर्त पुराण में ही पाया गया है, और यह पुराण सभी पुराणों में से सबसे नया है। इस पुराण में राधा और भगवान श्री कृष्ण की जो कथा लिखी गई है वह इस प्रकार है, श्री कृष्ण गोलोकधाम में निवास करते हैं। यह स्थान भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम से भी ऊंचा माना जाता है। गोलोकधाम में सबसे पहले राधा के दर्शन होते है। इसी पुराण में विराजा का भी उल्लेख मिलता है, विराजा से श्री कृष्ण को प्रेम हो जाता है और इसी कारण राधा का कृष्ण से वैर होता है। एक बार श्री कृष्ण विराजा से मिलने उनके घर जा रहे थे, तो राधा उनका पीछा करती है जब राधा विराजा के घर पर पहुंचती है, तो विराजा का द्वारपाल श्रीदामा उन्हें घर के अंदर प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता।
उस समय राधा रानी क्रोध में आ कर श्रीदामा को श्राप देती है कि वह असुर के रुप में जन्म लेगा और क्रोध में ही राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण को भी पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे देती है। इस पर श्रीदामा भी क्रोधित हो जाता है और राधा रानी को श्राप देता है कि वह भी पृथ्वी पर जन्म तो लेंगी, लेकिन एक चरित्रहीन स्त्री के रूप में पृथ्वी पर जानी जाएंगी। जब राधा रानी और श्रीदामा का क्रोध शांत होता है तो दोनों श्री कृष्ण जी के पास जाते हैं और दोनों खुद को एक दूसरे के श्राप से मुक्त करने के लिए निवेदन करते हैं। तब श्री कृष्ण श्रीदामा को असुर राज बनने का वरदान देते हैं और राधा को कहते हैं, जब भी वह धरती पर जन्म लेंगी, वो भी उनके साथ ही आएंगे।
पुराणों में इस प्रकार के उल्लेख के बाद इसी संबंध में अनेक रचनाएं सामने आने लगी। वैष्णव धर्म में भी प्रेम मार्ग शाखा की स्थापना इसी संबंध के आधार पर की गई है। इस्कॉन की धारा ने तो श्री कृष्ण और राधा के काल्पनिक संबंध को वैदिक सभ्यता से ही जोड़ दिया। पुराणों में तो ऐसा भी है कि राधा रिश्ते में श्री कृष्ण की मामी लगती थी, राधा का पति गोलोक में श्री कृष्ण का अंशभूत था, और गोलोक के संबंध से अगर देखा जाए तो राधा श्री कृष्ण की पुत्रवधू हुई ऐसा भी कहना है कि रायाण गोकुल में रहते थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा गया है कि राधा श्रीकृष्ण की मामी लगती थी। क्योंकि उनका विवाह श्री कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था।